Thursday, June 11, 2015

**मूलनिवासी विशेषतः दलित स्वतंत्रता सेनानी**


**मूलनिवासी विशेषतः दलित स्वतंत्रता सेनानी**
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१९४७ में आज़ादी प्राप्ति के पश्चात शासन, प्रशासन का पूरा तंत्र ब्रहमण मनुवादियों के आधीन हो जाने के कारण चाहे वह कांग्रेस की सरकार रही हो या RSS की राजनितिक शाखा BJP की, इतिहास के नाम पर वही लिखा गया जो ये मनुवादी या ब्रहमणवादी चाहते थे ! इनको ये सफ़लता मिलने का मुख्य कारण था , हज़ारों साल इनके ही द्वारा पीडित , आत्याचार भोगी ,निर्धन और अशिक्छित मूलनिवासी ,दलित समाज जिस्के लिये इन ब्रहमण मनुवादियों ने ६००० वर्षों पहले ही से शिक्छा की प्रप्ति वर्जित कर दी थी ! यहां तक कि वेदों का एक श्लोक सुनने के जुर्म में कानों मे गर्म सीसा पिलाने और उन्ही श्लोको के पढने के जुर्म में ज़ुबान काट लेने का फ़तवा दे रखा था ! ऐसे में दलितों को अपने आप को ही हीन भावना से देखने की मान्सिक्ता का बनना अपरिहार्य था ! वो शारीरिक ही नही मान्सिक गुलाम बन चुके थे ! हर कोइ सोच सकता है कि एक कुत्ता को अपने साथ रखने से ये मनुवादी पवित्र थे किन्तु अछूतों का मात्र साया भी पड जाने से अपवित्र हो जाते थे ! ऐसी स्थिति में वही हुआ जो होना था दलित समुदाय ने ये हार्दिक और मान्सिक तौर पर स्वीकार कर लिया था की हमारे जनम मरण का उद्देश्य ही इन मनुवादियों की दासता है ! इतिहास क्या है ,? भूगोल या सभ्यता या स्वाभिमान किस चिडिया का नाम है ? ये कुछ नही जानते थे और जान ने की चेष्टा पर मनुवादियों के घोर यातना से भयभीत थे ! फ़ल स्वरूप इतिहास के नाम पर वही लिखा गया जो ये मनुवादी चाहते थे , इस बीच दलित समाज में जो भी महापुरूष हुये जैसे महिसा सुर , रावण , शम्बोक ,एकलव्य , हिरण कस्प ,ज्योतिबा फ़ुले या रैदास जिन्में से कुछ को इन मनुवादियॊं ने असुर या रक्छस का घिर्णित नाम दिया ,किसी को गयान पाने के प्रयत्न और पूजा करने के गुनाह में गर्दन उडावा दिया ! या किसी दूसरे कुंठित षणयंत्र से उनकी जीवन लीला ही समाप्त कर दी गयी इस प्रकार उन दलित महा पुरुषों की आवाज दबा दी गयी ! मनुवादियों का भय और डर का निशान, दलित समुदाय के दिलों में और गहरा होता गया ! इन मनुवादियों को मन मानी छूट पाने में सफ़लता मिलती रही ! दलितों दवारा किया गया कोइ भी कार्य इतिहास के पन्नों में नही आने दिया गया ! प्रस्तुत है १९९७ में छपने वाली एक Booklet ' Sepoy Mutiny 1957-58 and Indian Perfidy (बेइमानी) जिसके प्रीफ़ेस में एक बंगाली दलित IAS अधिकारी लिखता है " भारतिय इतिहास को भारतिय उच्च वर्ग के शिक्छित लोगों ने बिल्कुल एक नया मोड दे दिया है जिसमें सत्य को कालीन के नीचे सुला दिया गया है कि वह कभी रोशनी या प्रकाश में न आसके ! उच्च वर्ग के ज़मीदारों की पूरी सहानुभूति अंग्रेज़ों के साथ थी "
जबकि ’दलित फ़्रीडम फ़ाइटर ’ का लेखक पन्ना क्रमांक ३६ पर स्वीकार करता है कि " ये सत्य है कि निम्न समुदाय के बहुत सारे लोगों ने असहयोग ,अंग्रेज़ों भारत छोडो , इत्यादि आंदोलनों में अपना अभूतपुर्व सहयोग दिया और जान गंवाइ , किन्तु यश और प्रसिद्धि उच्च वर्ग के हिस्से में आयी क्युं कि वही लोग इन आंदोलनों के संगठन करता थे !" ऐसे बहुत से बुद्धजीवियों के कथन, उदाहरण में प्रस्तुत किये जा सकते है !
जो भी हो, इतिहास का बदलना भी प्रकिर्ति का एक अटल नियम है ! दलितों में भी एक युग पुरुष ,महामानव का अवतार हुआ जिस के बिना दलित समुदाय ही नही भारत का इतिहास अधूरा है, संसार उसे डा० बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर के नाम से जानता है जिन्होंने इतिहास बदल डाला और अपने अथक प्रयास व लगन से दलित समुदाय को नयी जाग्रिति , चेतना के साथ स्वाभिमान की नयी ज़िंदगी दी ! शिक्छा के क्छेत्र में आगे बढता हुआ दलित समाज , शासन ,प्रशासन में जब अपने अधिकारों और भागीदारी का प्रश्न उठाया तो मनुवादियॊं के सीने पर सांप लोटने लगा ! उन्होने अज़ादी प्राप्ति के संदर्भ में दलित समाज को उलाहना दी ताने मारे , और महात्मा गांधी से अपने घोर विरोधी व दलितों के मसीहा डा० बाबा साहेब की अनबन को अधार बना कर आज़ादी के लडाइ में असहयोग का इलज़ाम लगा दिया कि दलित अपने लिये किसी भी प्रकार की भागीदारी का मुतालबा न कर सकें ! बात उस समय खुल कर आयी जब RSS के तत्वाधान में उसके करता धरताओं ने एक सोचे समझे प्लान के तहत , मूल निवासियों ,दलितों .अछूतों के द्वारा स्वतंत्रता संग्राम या भारत निर्माण के किसी मुख्य या अमुख्य किसी भी प्रकार में किये गये अविस्मरणीय कार्यों को मिटाकर मनुवादियों पर आधारित , ब्रहमणवाद के गुणगान में अपनी मन मरज़ी नये इतिहास की रचना के लिये All India History Compilation Project नामक १९९९ में एक कमेटी बनाइ ! जिसकी बैठक १७ से १९ जुलाइ को इलाहाबाद में हुयी ! इस बैठक में दलितों के इतिहास को लिखने से दामन बचाने व उनके इतिहास को ही समाप्त कर देने के लिये एक सोची समझी रणनीति के तहत ’मोरेश्वर नीलकंठ पिंगले’ दावारा ये कहा गया कि शुद्र ग्वाला ,घूमन्तर जातियों और आदिवासीयों का इतिहास लिखना भारतिय समाज में समस्याओं का जनक और घिर्णा का सूत्रपात होगा ! अजीब बात और अजीब तर्क था इस प्रकार वह भारत के निर्माण में , भारत के स्वतंत्रता संग्राम में दलितों की मुख्य या अमुख्य किसी भी भूमिका को नकार रहे थे ! उनके द्वारा तर्क में ये कहा जा रहा था दलित समुदाय हमेशा से सुस्त , काहिल, पढाये जाने योग्य या नौसिखुआ या दूसरे शब्दों मे अशिक्छित और अयोग्य था इसलिये वो कैसे १९५७ के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय और कुशल भूमिका निभा सकते हैं ?, किन्तु RSS और BJP वाले भूल गये कि जब कपडा , और प्रतिदिन के जीवन में उप्योग होने वाली बस्तुयें ब्रिटेन से आयात की जाने लगीं तो उसका प्रभाव इन दलित जातियों पर ही पडा जैसे जुलाहे , लोहार बढइ और दूसरी दलित जातियां बेरोजगार होगयी उन का दैनिक जीवन तबाह होगया और अंग्रेज़ उनको अपना सबसे बडा शत्रु नज़र आने लगे परिणाम स्वरूप उन्होनें १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिया भूमिका निभाइ ! साथ ही १७५७ के पलासी युद्ध का हवाला देकर RSS और BJP के उच्चस्तरीय लोगों द्वारा दलितों को Anti national (देशद्रोही) सिद्ध करने के लिये ये भी कहा गया कि पलासी युद्ध में दलित बहेलिया और दुसाधों ने अंग्रेज़ फ़ौज और गवर्नर जनरल लार्ड क्लाइव का साथ दिया था ! जिस पर उस समय के U.P. के राज्य पाल जो स्वयं शुद्र थे सूर्य भान , उन RSS और BJP वालों पर भडक उठे , यहां तक कि अपशब्दों का भी प्रयोग किया ! उन्हों ने कहा " जिस रामायण का तुम लोग पाठ करते हो जिस राम और सीता की तुम पूजा करते हो वह एक दलित’वाल्मिकि’ की देन है !" (संदर्भ के लिये जिसको चाहिये Dalit freedom fighter नामक पुस्तक में ये देख सकता है !)
यही कारण थे कि दलितों को अपने अस्तित्व जो मनुवादियों द्वारा मिटा दिया गया था ,इतिहास के पन्नों से समाप्त कर दिया गया था , को ढूढने की आवश्यक्ता आन पडी ! उन्होने अधिक तो नही किन्तु कुछ हद तक इसमें सफ़लता भी पायी और आज भी स्वतंत्रता सेनानियों ,भारत के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले अपने , महापुरुषों वीरों और वीरांगनाओं को भारतिय समाज और इतिहास से परिचित कराने में व्यस्त हैं ! मै उनकी इस महान और पवित्र कार्य का आदर व सम्मान करता हूं !
नीचे कुछ गिने चुने दलित स्वतंत्रता सेनानियों के संदर्भ में वर्णित किया जा रहा है !
१- माता दीन भंगी -" बडा आवा है ब्रहमन का बेटा ! जिन कारतूसों का तुम उप्योग करते हो उन पर गाय का चर्बी लगावल जात है ! जिन्हे तुम अपने दांतों से तोड कर बन्दूक में भरत हो ,ओ समय तुमका जात और धर्म कहां जावत! धिक्कार है है तुम्हारे इस ब्रहमनवाद का !"
उपर्युक्त शब्द हैं १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम के जनक माता दीन भंगी का जिसने बाराक पुर मे मंगल पांडॆ को संबोधित करते हुये कहा था ! जिसकी सज़ा भी उसे मिली जी हां अछूत नाग वशी ’भंगी माता दीन हेला ’ जिसको S R Sajiv Ram के अनुसार ’१८५७ के स्वतंत्रता संग्राम का जनक ’ भी कहा जाता है ! जिसकी जीवनी ’दलित केसरी , अनार्य भारत (मनी पुर यू पी) , हिमायती, दलित साहित्यिक पुस्तिका , में छपी थी !
२ - उदैया चमार - आप को ये जानकर हैरत होगी कि आज़ादी की लड़ाई 1804 में ही शुरू हो गई थी । और यह लड़ाई लड़ी गई थी छतारी के नबाब द्वारा , छतारी के नबाब का अंग्रेजो से लड़ने वाला परम वीर योद्धाथा ऊदैया चमार ,जिसने सैकड़ो अंग्रेजो को मौतके घाट उतार दिया था । उसकी वीरता के चर्चे अलीगढ के आस पास के क्षेत्रो में आज भी सुनाई देते हैं , उसको 1807 में अंग्रेजो द्वारा फाँसी दे दी गई थी। किन्तु आज इतिहास उस के संबंध में चुप है ! क्यों ? इसका उत्तर आप आसानी से सोच सक्ते है कि इसके पीछे कारण में कौन लोग हैं !
३ - बांके चमार - बांके जौनपुर जिले के मछली तहसील के गाँव कुवरपुर के निवासी थे , उनकी अंग्रेजो में इतनी दहशत थी की सं० 1857 के समय उनके ऊपर 50 हजार का इनाम रखा था अंग्रेजो ने । सोचिये जब १रूप्ये से कम पैसे की इतनी कीमत थी की उस से बैल ख़रीदा जा सकता था तो उस समय 50 हजार का इनाम कितना बड़ा होगा ! अपने १८ साथियो के साथ फ़ांसी पर लटका दिये गये !
४ - वीरांगना झलकारी बाई - इस वीरांगना को कौन नहीं जानता? जिस के पति क नाम पूरन कोरी था ! रानी झाँसी से बढ़ के हिम्मत और साहस था उनमे , वे चमार जाति की उपजाति कोरी जति से थी । पर दलित होने के कारण उनको पीछे धकेल दिया गया और रानी झाँसी का गुणगान किया गया !
उनके युद्ध कौशल के कारण ही कुच लोगो के अनुसार लक्छमी बाइ प्रताप गढ या नेपाल जाने में सफ़ल हो सकी उनकी सूरत झांसी की रानी से इतनी मिलती थी कि अंग्रेज़ फ़ौजी जनरल भी धोका खा गया ! D.C Dinkar के अनुसार "झांसी की रानी राज पाट की आशिक थी वह अंग्रेज़ों से युद्ध नही करना चाहती थी !"
५ - वीरा पासी -1857 में ही राजा बेनी माधव ग्राम मूरा मऊ जिला रायबरेली को अंग्रेजो द्वारा कैद किये जाने पर उन्हें छुड़ाने वाला अछूत वीरा पासी थे !
६ - गंगा दीन मेहतर - ये गंगू बाबा के नाम से भी आज जाने जाते हैं उनके इलाके कानपूर के लोग कहते हैं कि वे एक भंगी जाति के पहलवान थे १८५७ में अंग्रेज़ों के विरुद्ध सतीचौरा के करीब वीरता से लडॆ , अपना प्राक्रम दिखाया बहुत से अंग्रेज़ों को मौत के घाट उतारा बाद में अंग्रेज़ों द्वारा गिरिफ़्तार हुये और सुली पर लटका दिये गये !
७ - मक्का पासी - १० जून १८५७ अंग्रेज़ों की आरमी का एक छोटा दस्ता लारेंस हेनरी की कमान में अवध से चिनहाट, बाराबंकी जारहा था मक्का पासी ने २०० पासियों को लेकर उनका रास्ता रोका और कइ अंग्रेज़ों को मार गिराया अन्त्तः लारेंस के द्वारा आज़ादी की जंग में शहीद होगये ! पासी समुदाय के लोगों ने अवध के बडे भूभाग पर राज्य भी किया किन्तु मनुवादी व्यवस्था के पोषक इतिहासकारों ने उसे इतिहास के पन्नों में जगह नही दी ! मायावती ने उनके ये नाम लिखे हैं जो ये हैं - महाराजा बिजली पासी, महाराज लखन पासी, महाराजा सुहाल देव, महाराजा छेटा पासी, और महाराजा दाल देव पासी !
८ - उदा देवी - १९७१ सेनसस रेकार्ड के अनुसार बेगम हजरत महल का एक पासी पलटन भी था ! ये वीरांगना उदा देवी, लखनऊ के उजेरियन गांव की रहने वाली थीं, अपने शौहर की अंग्रेज़ों द्वारा गिरफ़्तारी के बाद बेगम हजरत महल द्वारा बनाइ गयी आरमी का एक कमांडर थीं ! जिनका पति मक्का पासी थे जो चिनहाट बाराबंकी में अग्रेज़ों द्वारा शहीद कर दिया गये थे और उसकी लाश पर रोते हुये मक्का देवी ने प्रतिशोध की कसम खाइ थी !
"पीपल के पेड के नीचे ठंडा पानी रखा हुआ था गरमी बहुत थी सख्त धूप में अंग्रेज़ सिपाही आते और पानी पी कर लेट जाते ! ततपश्चात जनरल डावसन को कुछ संदेह हुआ वह सावधानी पुर्वक आया उसने देखा अंग्रेज सिपाहियों को गोली मारी गयी है ! उसने लाशों को देखते हुये कुछ अन्दाज़ा लगाया और वैलेक को आवज़ दी और कहा की ये गोलियां बतारही हैं के आगे या पीछे से नही बल्कि उपर से मारी गयी हैं अब वो पेड पर देखने लगे जहा एक साया सा दिखाइ दिया वैलेक ने पोज़िश्न ली फ़ायर किया ! उपर से साया गिरा जो कोइ औरत थी ये और कोइ नही वीरांगना ’उदा देवी’ थीं जिन्होने अपना प्रतिशोध लेलिया था और वतन पर शहीद हो चुकी थीं ! उन्हों ने ३५ अंग्रेज़ सैनिकों को परलोक की राह दिखा दी थी ! किन्तु दलित होने के नाते उस वीरांगना को मनुवादीयों ने इतिहास में जगह नही दी ! १९८० से लोग उन्हें जानने लगे !
विश्व इतिहास में शायद ये पह्ले पति पत्नी हैं जो दोनों अपने देश के लिये शहीद होगये !
९ - महावीरी देवी - ये वीरांगना पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़र नगर की थीं जिनके संबंध में कहीं कोइ चरचा नही ! लेकिन उनकी गाथा में अगरा की ये लोक गीत प्रस्तुत है !
" महावीरी भंगन के गनवा भैया गावत के परत !
सन ५७ के गदर में दी उसने कुरबानी !
अंग्रेज़ों के सामने उसने हार नही मानी !!"
एक दूसरी लोक गीत में उसका बखान ऐसा है -
" चमक उठी सन ५७ में वह तलवार पुरानी !
महावीरी भंगन थी ! बडी मरदानी !!"
इस वीरांगना को भी भारतिय इतिहास मे जगह नही मिल सकी , किन्तु लोगों के दिलों में आज भी सम्मान और आदर के साथ ये वीरांगना जीवित हैं !
१० - चेता राम जाटव - कहते हैं महाराजा पटियाला ने एक आदमी को देखा जो एक म्रित शेर को पीठ पर लादे चला आ रहा था शेर का बदन गर्म था उस आदमी के पास कोइ हथियार नही था पूछने पर पता चला कि उस आदमी ने ही बिना हथियार के शेर को मार गिराया है ! वह राजा की फ़ौज में शामिल होगया ये चेता राम जाटव थे जो बाद में गिरिफ़्तार होने पर पेड से बांध सूट करदिया गये थे ! इसप्रकार अपने देश के लिये शहादत पायी थी लेकिन इतिहास में इन्हें भी कोइ स्थान नही मिला ! हां उनकी कहानी आज भी लोगों में गूंजती है !
११ - बालू राम मेहतर - ये भी वीर बांके चमार के साथ और उन्के ही जैसा पेड से बांध कर शूट कर दिये गये ! इनके साथ बाकी १६ दलितों को पेड से लटका कर फ़ांसी दे दी गयी थी !
१२ - बाबू मंगू राम - जाति से चमार थे इनका जन्म १८८६ ग्राम मोगोवाल जिला होशियार पुर पंजाब मेंहुआ था ! देश के लिये जीवन पर्यंत संघर्षरत रहे विदेशों मे ठोकरें खाइ कइ बार शूट होने के हुक्म के पर्यंत जीवन पाया इनकी कहानी बहुत लंबी है ! ’आदि धर्म ’ की स्थापना की !
१३ - उधम सिंग - ये भी दलित जाति कम्बोज से थे अनाथालय मे पले अग्रेज़ी भाषा किसी अंग्रेज़ की तरह बोलते थे मोहम्मद सिंग के नाम से Caxton Hall मे जलियां वाला बाग के पापी पजाब के गवर्नर जनरल डायर को गोली मारी और जलियां वाला बाग का बदला लिया जिसकी गांधी ,नेहरु और अनेक आर्यों द्वारा भर्तसना की गयी ! आज उनका नाम तो है किन्तु दिखावे के लिये !
इसके अतिरिक्त, जी डी तपसे, भोला पासवान, पन्ना लाल बरुपाल , सन्जिवय्या , रामचंद्र वीरप्पा ,सिदरन और लाखों दलित हैं जिन्हों ने स्वतंत्रता संगराम में अपने देश के लिये जान गवाइ ! खैर ये व्यक्तिगत विवरण था एक दो सामूहिक घटना की बातें भी हो जायें की वो पहलू भी शेष न रहे !
(१) आज़ादी की लड़ाई में चौरा- चौरी काण्ड एक मील का पत्थर है ,इसी चौरा- चौरी कांड के नायक थे रमापति चमार, इन्ही की सरपस्ती में हजारो दलितों की भीड़ ने चौरा-चौरी थाने में आग लगा दी थी जिससे 23 अंग्रेज सिपाहियों की जलने से मौत हो गई थी । इतिहासकार श्री डी सी दिन्कर ने अपनी पुस्तक ' स्वतंत्रता संग्राम में अछूतों का योगदान ' में उल्लेख किया है की - " अंग्रेजो ने इस काण्ड में सैकड़ो दलितों को गिरफ्तार किया । 228 दलितों पर सेशन सुपुर्द कर अभियोग चला। निचली अदालत ने 172 दलितों को फांसी की सजा सुनाई। इस निर्णय की ऊपरी अदालत में अपील की गई ,ऊपरी अदालत ने 19 को फाँसी, 14 को आजीवन कारावास , शेष को आठ से पांच वर्ष की जेल की सज़ा सुनाइ ! ।2 जुलाई 1923 को 18 अन्य दलितों के साथ चौरा-चौरी कांड के नायक रमापति को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया । चौरा- चौरी कांड में फाँसी तथा जेल की सजा पाने वाले क्रन्तिकारी दलितों के नाम थे-1- सम्पति चमार- थाना- चौरा, गोरखपुर, धारा 302 के तहत 1923 में फांसी 2- अयोध्या प्रसाद पुत्र महंगी पासी- ग्राम -मोती पाकड़, जिला, गोरखपुर , सजा - फाँसी 3- कल्लू चमार, सुपुत्र सुमन - गाँव गोगरा, थाना झगहा, जिला गोरखपुर, सजा - 8 साल की कैद 4 - गरीब दास , पुत्र महंगी पासी - सजा धारा 302 के तहत आजीवन कारावास 5- नोहर दास, पुत्र देवी दीन- ग्राम - रेबती बाजार, थाना चौरा-चौरी गोरखपुर, आजीवन कारवास 6 - श्री फलई , पुत्र घासी प्रसाद- गाँव- थाना चौरा- चौरी , 8साल की कठोर कारवास ! 7- बिरजा, पुत्र धवल चमार- गाँव - डुमरी, थाना चौरा चौरी , धारा 302 के तहत 1924 में आजीवन कारवास 8- श्री मेढ़ाइ,पुत्र बुधई- थाना चौरा, गोरखपुर, आजीवन कारवास इसके आलावा 1942 के भारत छोडो आंदोलन में मारने वाले और भाग लेने वाले दलितों की संख्या हजारो में हैं जिसमें से कुछ प्रमुख हैं- 1- मेंकुलाल ,पुत्र पन्ना लाल, जिला सीता पुर यह बहादुर दलित 1932 के मोतीबाग कांड में शहीद हुआ ! 2- शिवदान ,पुत्र दुबर -निवासी ग्राम - पहाड़ी पुर मधुबन आजमगढ़ , इन्होंने 1942 के 15 अगस्त को मधुबन थाना के प्रात:10 बजे अंग्रेजो पर हल्ला बोला , अंग्रेजो की गोली से शहीद हुए। इसके अलावा दलित अमर शहीदों का भारत अभिलेख से प्राप्त परिचय - मुंडा, मालदेव, सांठे,सिंहराम, सुख राम,सवराउ, आदि बिहार प्रान्त से । आंध्र प्रदेश से 100 से ऊपर दलित नेता व कार्यकर्ता बंदी। बंगाल से 45 दलित नेता बलिदान हुए आजादी की लड़ाई में ऐसे ही देश के अन्य राज्यो में भी दलितों ने आज़ादी के संग्राम में अपनी क़ुरबानी दी ।
(२) - २० जुलाइ १८५७ को अंग्रेज़ी सैन्य टुकडी उन्नाव से १० किमी० दूर मगरवारा गांव से कानपूर जाते समय , २००० पासियों ने पत्थर वर्षाते हुये उसका रास्ता रोका फ़ौज को रास्ता बदलना पडा ४ अगस्त को कानपूर से एक बडी सैन्य टुकडी सभी साजो सामान से फिर मगरवारा गांव से गुजरी पासियों ने फिर रास्ता रोका किन्तु इसबार सैन्य दल हर तरह का प्रबंध करके आया था फ़लस्वरूप २००० पासी अपने देश पर शहीद होगये कोइ भी जीवित नही बचा !
(३) हरबोला - ये भी दलितों में मदारी , बाज़ीगर ,नट बेवैरिया , सूत उपजातियां थीं जिसके लोग वगावत का संदेश जगह जगह गांव गांव ,घर घर गा कर या कहानी में गुप्त रूप से पहुंचाते थे !
इसके अतिरिक्त , चमार ,पासी,धोबी,खटिक, दुसाध, बसोर, धानुक, वाल्मिकि , कोरी,डोम , कोल ,धरिकार, खरबार. मुसहर , बेलदार , कंजरा , नट्, भुऐर ,घासी ,हवूदा, हारी, कलबाज ,कापडिया , कर कड . खैराहा ,अगरिया , वधिक , वाडी , भैंस्वार ,बजरिया , बजागी , वलहार , बंगाली ( ये सांप के चमडे और जडी बूटी बेचने वाले ) बांसफ़ोर, वरवार , वेदिया , भन्डू , बौरिया , लालबेगी, मज़हबी ( कहाडा) परिका , परडिया , पतरी , सहरिया , बहेलिया सनसिया , वलाइ बावैरिया सभी दलितों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया अपनी जान देश के लिये कुर्बान किया !
किन्तु
अजीब बात है जब उच्च वर्ग के ज़मींदार और शिक्छित लोग धन, सम्मान या ’राय बहादुर’ जैसी उपाधियां पाने या मूल निवासियों की ज़मीन हडपने के चक्कर में अंग्रेज़ों का सहयोग और चाटुकारिता कर रहे थे , जैसे बैकिम चंद्र चटर्जी जो १९ वर्ष की आयू में ग्रेजुएशन के बाद अंग्रेज़ों द्वारा डिप्टी मजिस्ट्रेट बना दिये गये और उन्होने अपने उपन्यास में कइ बार स्वीकार किया है कि "अंग्रेज़ हमारे मित्र है" ! रविंद्र नाथ टैगोर जो जार्ज पंचम के स्वागत समारोह के लिये ’जन गन मन’ लिखे , मनुवाद का नुयायी ’तिलक’ जो कहते थे कि ये तेली तंबोली संसद जाकर क्या हल चलाये गें ! माफ़ी वीर सावरकर जिसने ६ बार माफ़ी मांगी और रिहाइ के उपलक्छ ’बांटो और शासन करो ’के अंग्रेज़ों के असूल को सार्थक बनाने और अखंड भारत के पार्टीश्न में अहम भूमिका निभाइ , नाथू राम गोडसे जैसे बहुत से अन्य लोग वीर , धर्म वीर , देशभक्त , भारत रत्न , और जाने क्या क्या कहलाये , क्युं कि ये ब्रहमण थे मनुवादी थे , जबकि इसके विपरीत मूल निवासी जो केवल अपने देश भारत को अज़ाद कराने के लिये लिये भूखे प्यासे जंगल से लेकर शहरों , गावों में बिना किसी उपाधि ,बिना दौलत की लालच में लडते रहे और इसी कारण अंग्रेज़ों की घिर्णा ,शत्रुता, प्रकोप का शिकार भी होते रहे , अंग्रेज़ों की नज़र में क्रिमिनल कहलाये उनके लिये विशेषतः १८७१, १८९६ ,१९०१ ,१९०२, १९०९ ,१९११, १९१३ ,१९१४ ,१९१९ ,१९२४ क्रिमिनल एक्ट पास किये गये, फ़िर भी वो स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते रहे ,सर कटाते सूली पर चढते रहे , किन्तु उनका सवतंत्रता संग्राम और भारत निर्माण में कोइ भागीदारी होने से भी ब्रहमणवादियों मनुवादियों का इनकार किया अर्थ रखता है ! इसे समस्त दलित और मूल निवासियों को सोचना होगा !
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