ये उदास और उजड़ा उजड़ा सा सूरज हर शाम छितिज के धुँधले समु
समंदर में क्यों डूब जाता है ?कायनात में सिसकते हुए हजारों चिराग किस लिये बुझ
जाते हैं ? सितारों की रहनुमाई में भी मुहब्बत का राही क्यों रस्ते से भटक जाता
है?ज़माने के ज़रिये ठुकराया अपने आप से फरार की कोशिश में किसी के दामन -ए - मोहब्बत
की पनाह क्यों ली जाती है शबनम की नन्ही नन्ही बूंदे सब्जाजारों को चमकती हुयी
ज़िन्दगी का पैगाम देकर फ़ना क्यूँ होजाती है ? ये हरे भरे पेड़ अपने ही सूखते हुए
पत्तों को अपने वजूद से दूर क्यूँ कर देते है ? खूबसूरत ,मुक़द्दस और बेलोस दुआयें
आसमानों से क्यों ठुकरा दी जाती है और नोकीले पत्थरों कि सूरत गिर कर दुआ करने
वालों को ही लहू लोहन क्यूँ कर जाती है! जाने मैं ऐसा क्यों सोचता हूँ या कुछ और
कहना चाहता हूँ , जाने क्या कहना चाहता हूँ ! कही मैं तुम से या उस से वो तो नहीं
कहना चाहता जो "कभी कह नहीं सका " तुम तो जानती हो मैं परले दर्जे का भिखारी हूँ
मेरे पास सिवाये एक हसरत और एक शब्द के कोई और शब्द भी नहीं है! हाँ कभी कभी सोचता
हूँ !कहीं ऐसा तो नहीं की मेरी उस बात के लिए कोई भी शब्द बहुत ही छोटा है i. शायेद
ऐसा ही है...............इस लिये गुज़रिश है तुम खुद ही समझ लेना
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